अग्नि: शेषम्
ऋण: शेषम् ,
व्याधि: शेषम् तथैवच ।
पुनः पुनः प्रवर्धेत,
तस्मात् शेषम् न कारयेत ।।
अर्थात, हल्के में लेकर छोड़ दी गयी आग, कर्ज़ और बीमारी, मौक़ा पाते ही दोबारा बढ़कर ख़तरनाक हो जाती हैं | इसलिए इनका पूरी तरह उपचार बहुत आवश्यक होता है |